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अगर गन्तव्य न पता हो तो इन्सान कभी उतनी दूर नहीं जाता
अगर सारे कानून सीखने पड़ें तो उन्हें तोड़ने का समय कहां बचेगा
अविरत आनन्द के दिनों के अतिरिक्त जीवन में सभी कुछ सहनीय है
आदमी अपनी समझ नहीं अपने विवेक से धोखा खाता है
उन्माद कमी या सदाचार तभी बनता है जब उसकी अति हो
जब हम कम जानते हैं, तभी ठीक जानते हैं; ज्ञान के साथ शक भी बढ़ जाता है
जहां ज़्यादा रोशनी होती है वहां अंधेरा भी गहरा होता है
भाषा की शक्ति विदेशी चीज़ के परित्याग में नहीं वरन् अपने में उसके सम्मिलन में है
मैं ऐसी कोई ग़लती नहीं देखता जो मुझसे न हो सकती हो
लोगों के साथ ऐसा व्यवहार करें जैसे उन्हें होना चाहिए, तो जो बन सकते हैं वह बनने में उनकी मदद करेंगे
हर आकर्षण दो-तरफ़ा होता है
हर कोई सिर्फ़ वही सुनता है जो समझता है